बीते लम्हे
जो पुरानी यादों में जिंदगी ढूंढा करते है
उन्हें सिर्फ दो पल कि मुश्कुराहट ही नसीब होती है,
और फिर उम्र भर कि तन्हाई एक ऐसी तन्हाई जहाँ
हम भरी महफ़िल में भी अकेले हो जाते है,
और अधुरापन भी हमे पूरा लगने लगता है,
एक ऐसी मनहूसियत दिल पे छा जाती है
जो चाहे भी तो मिट नही पाती है,
और वो यादें भुलाये भी भुला नहीं पातें है,
रह रह के जिस्म में गड़े कांटे कि तरह दर्द दिए जाते है ।
और हम हंस हंस के टाल दिया करते है,
क्यूंकि शायद मुकद्दर को यही मंजूर था,
क्या सिकवा हम किसी और से करे जब
मंजिल ही हमसे रूठ गयी हो,
जो नायब तौफा खुदा से मिली थी
वो हांथों से यूँ छुटी कि टूट के बिखरी
और किनारे पे जा गिरी और कस्ती हमारी डूब गयी |
उन्हें सिर्फ दो पल कि मुश्कुराहट ही नसीब होती है,
और फिर उम्र भर कि तन्हाई एक ऐसी तन्हाई जहाँ
हम भरी महफ़िल में भी अकेले हो जाते है,
और अधुरापन भी हमे पूरा लगने लगता है,
एक ऐसी मनहूसियत दिल पे छा जाती है
जो चाहे भी तो मिट नही पाती है,
और वो यादें भुलाये भी भुला नहीं पातें है,
रह रह के जिस्म में गड़े कांटे कि तरह दर्द दिए जाते है ।
और हम हंस हंस के टाल दिया करते है,
क्यूंकि शायद मुकद्दर को यही मंजूर था,
क्या सिकवा हम किसी और से करे जब
मंजिल ही हमसे रूठ गयी हो,
जो नायब तौफा खुदा से मिली थी
वो हांथों से यूँ छुटी कि टूट के बिखरी
और किनारे पे जा गिरी और कस्ती हमारी डूब गयी |
By :- बिट्टू सोनी
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