Sunday 11 March 2018

दुशमन ज़माना

           THE PIVOTAL

        दुशमन ज़माना     


ज़माने को भूल कर जिओ ज़माना तुम्हे नकारती है |
इसीलिए , निगाहे किसी से दो चार कर लो,
खुद से ज्यादा किसी पे इतबार कर लो|
क्या पता जिंदगी में कल क्या हो,
चल अब लम्हों से प्यार कर लो |
दास्ताँ ज़माने की क्या बताऊँ दोस्तों |
कदम दो चार चलता हूँ मुकद्दर रूठ जाता है ,
हर एक उम्मीद से रिश्ता टूट जाता है,
ज़माने को सम्भालू गर तो उनसे दूर होता हूँ,
उनका दामन सम्भालू तो ज़माना छूट जाता है |
बस यूँ ही कट रही जिन्दगानी है |
ना जाने कैसा दर्द है दिल मे भरा ,
ना रो सकता हूँ ,ना हंस सकता हूँ |
क्या बताऊँ ज़माने की बेरुखी दोस्तों , दर्द पे हंसती है ,
और ख़ुशी पे मचलती है |गर हो जाए तुमको प्यार किसी से ,
तों ज़माना तुझपे हंसती है | पर ज़माने को कौन समझाए , मोहब्बत से ही दुनिया बस्ती है |
ज़माने की खातिर खुद को भुला बैठा और
इंतजार करता रहा मौत का , पर मौत की रुसवाई तों देखो यारों ,
ज़माने की डर से मेरे पास न आया | अब तों मैंने भी सोच ली , कुछ ऐसा कर जाऊं कि मौत भी चौंखट पे बैठे मेरा इंतजार करे   और मैं नज़र ना आऊँ | कैसा अजीब ज़माना है किस ने इसको जाना है, दिल तों जीता है मोहब्बत की सहरो से, बिन मोहब्बत के कहाँ है इसका ठिकाना| ज़माने की खातिर उनसे जुदा हूँ ,क्या बताऊँ किस कदर उनपे फ़िदा हूँ|  बस ज़माने को अब बताना है , दर्द में जी के दिखाना है |

                                                रचनाकार :- बिट्टू सोनी

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